मोह् के रहते हुए प्रभु के चरणों में दॄढ़ अनुराग नहीं होता और बिना सत्संग के मोह नहीं मिटता । अतः मनुष्य के जीवन में सत्संग का सातत्य चाहिए ।
मोह् के रहते हुए प्रभु के चरणों में दॄढ़ अनुराग नहीं होता और बिना सत्संग के मोह नहीं मिटता । अतः मनुष्य के जीवन में सत्संग का सातत्य चाहिए ।
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