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॥ भक्त चरित्र ॥
॥ भक्त चरित्र ॥ इस असार संसारमेँ भगवान् के भक्तोँका चरित्र ही सार है।भक्त ही मानव-जातिके प्राण है,भक्त ही संसाररूपी वृक्षके अमृत फल है,भक्त ही सभ्य समाजको प्रकाश देनेवाले प्रदीप हैँ।भक्तोँके चरित्र सदा ही नवीन,मंगलमय तथा मानव-जीवनमेँ सात्त्विक भावोँका संचार करनेवाले हैँ।आदर्श व्यवहार,इन्द्रिय, मनपर विजय,पवित्र सेवाभाव,त्याग,भगव भ्दक्ति,प्रेम आदिके सच्चे स्वरूपका दर्शन भक्तोँके चरित्र और पारमार्थिक उपदेश हैँ। भक्त चरित्रोँको पढनेसे भगवान् के प्रति सच्ची श्रध्दा और भक्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है।वास्तवमेँ भक्ति,भक्त भगवान् और गुरुके केवल नाम अलग-अलग हैँ,ये सब एक ही रूप हैँ।{विराम}
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પરિવાર…….!
પરિવાર…….!
જ્યાં બંધારણ ના હોય પણ વ્યવસ્થા હોય……!
જ્યાં સુચના ના હોય પણ સમજણ હોય……..!
જ્યાં કાયદો ના હોય પણ અનુશાસન હોય……!
જ્યાં ભય ના હોય પણ ભરોસો હોય……..!
જ્યાં શોષણ ના હોય પણ પોષણ હોય……!
જ્યાં આગ્રહ ના હોય પણ આદર હોય……!
જ્યાં સંપર્ક નહિં પણ સંબંધ હોય…….!
જ્યાં અર્પણ નહિં પણ સમપર્ણ હોય…….!
એજ સાચો પરિવાર……..!
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“अवतार”
“हिरणाक्ष_वाराह, हिरण्यकशिपु_नृसिंह, वामन_बलि, राम_रावण, कृष्ण_कंस,” -ॐ वाराह नृसिंह धर्म के अवतार, वामन अर्थ कै, राम काम कै, कृष्ण भक्ति कै अवतार हैं ॐ क्रमशः
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