भक्त मनोरथ पूरक श्री नृसिंह भगवान के प्राक्टय अवतार की मंगल बधाई. .!!
जय जय श्री नरसिंह हरि !
यह जगदीश भक्त भय मोचन खंभ फारि प्रकटे करूणा करी
हिरण्यकशिपु कों नखन बिदार्यो तिलक दियो प्रहलाद अभयशिर
परमानंददास को ठाकुर नामलेत सब पाप जात जर !!
हिन्दू पंचांग के अनुसार नृसिंह जयंती का व्रत वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी पावन दिवस को भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में अवतार लिया था. जिस कारणवश यह दिन भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है. भगवान नृसिंह जयंती की व्रत कथा इस प्रकार से है-कथानुसार अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए राक्षसराज हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न कर उनसे अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया. वरदान प्राप्त करते ही अहंकारवश वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा और उन्हें तरह-तरह के यातनाएं और कष्ट देने लगा. जिससे प्रजा अत्यंत दुखी रहती थी. इन्हीं दिनों हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रहलाद रखा गया. राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी बचपन से ही श्री हरि भक्ति से प्रहलाद को गहरा लगाव था.हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद का मन भगवद भक्ति से हटाने के लिए कई असफल प्रयास किए, परन्तु वह सफल नहीं हो सका. एक बार उसने अपनी बहन होलिका की सहायता से उसे अग्नि में जलाने के प्रयास किया, परन्तु प्रहलाद पर भगवान की असीम कृपा होने के कारण उसे मायूसी ही हाथ लगी. अंततः एक दिन उसने प्रहलाद को तलवार से मारने का प्रयास किया, तब भगवान नृसिंह खम्भे से प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और अपने भक्त की रक्षा की…!!
” जो भक्तन सों बैर करत है परमेश्वर सों बैर करे “
जो जीव प्रभु के प्रिय भक्तो का द्वेष , निंदा, ईर्षा या फीर बैर करता है वह जीव प्रभु को अप्रिय है !!
केशवधृत नरहरि रूप जय जगदीश हरे श्रीनृसिंहजी के प्रागट्योत्सव “नृसिंह चतुर्दशी” की बधाई……
आज वैशाख सुदी चौदस शुक्रवार दि 24 मई 2013 नृसिंह चतुर्दशी का उत्सव हे!
श्रृँगार :- केसरिया पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोरपंख का जोड़, कुण्डल, हीरे के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, पिछवाई-केसरिया।
विशेषता: – आज संध्या आरती के पश्चात् श्रीनृसिंह भगवान का जन्म होता है। उस वक्त श्रीशालग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है। ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने में फूलों के आभरण और फूलों के वस्रादि के श्रृँगार होते हैं। जैसा श्रृँगार प्रातःकाल होता है वैसा ही फूल निर्मित श्रृँगार संध्या भोग आरती में भगवान को धराया जाता है। पाँच अभ्यंग होते हैं।
-Go.Hariray…!!
at London 12:20am
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