गुणीनं वेत्ति गुणी गुणीषु मत्सरी ।।
गुणी च गुणरागी च विरल: सरलो जनः ।।
अर्थात-गुणहीन व्यक्ति गुणवान के महत्व को नही जानता तथा गुणवान व्यक्ति भी दूसरे गुणी लोगों से ईर्ष्या करता हैं, इस संसार में स्वयं गुणवान होते हुए दूसरों के गुणों का समादर करनेवाले सज्जन व्यक्ति बहुत ही अल्प संख्या में होते हैं….!!
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