विचार मंथन…!!

वाणी  ज़िह्वा..!! 

लक्ष्मीर्वसति जिह्वाग्रे, जिह्वाग्रे मित्रशत्रव: ।
जिह्वाग्रे बन्धमौक्षी च जिह्वाग्रे मरणम ध्रुवं ।।

ज़िह्वा के अग्र भाग में लक्ष्मी का वास है, एवं मित्र और शत्रु भी वही बसते है, जिह्वा के द्वारा बोली हुई प्रिय और मधुर वाणी ही मित्र बनाती है एवं जिह्वा द्वारा कहे गए कटु वचन ही शत्रुओ को न्योता देती है..!!

जिह्वा ( वाणी) ही हमारे बंधन और मोक्ष (मुक्ति) का कारण रूप है..!!

कटू जिह्वा ( वाणी) ही हमारे संसार में कुरुक्षेत्र का निमार्ण करती है एवं  मधुर वाणी ही हमको दिव्य वृंदावन का अनुभव कराती है…!!

  ” लब्ज़ ही ऐसी  चीज़  है
       जिसकी वजह  से  इंसान
    या  तो  दिल  में  उतर  जाता  है
       या दिल से उतर  जाता  है ”

जिह्वा का दूसरा कार्य स्वाद है…!!जिह्वा को जब  विविध रस के स्वाद का चसका लगता है तब वही अति स्वाद के लोभ से हमारे शरीर में रोगों को आमंत्रित करती है..!

जिह्वा ( वाणी) ही हमारे जीवन में सुख एवं दुःख का कारण है..!!

पानी एवं वाणी का सदुपयोग करे..!!

ऐसी वाणी बोलिए  जो मन का आपा होय ओरन को शीतल करे आपहु शीतल होय…!!

वाणी गुणानु कथने श्रवणो कथायां…!! (श्रीमदभागवत)

अर्थ – मेरी ज़िह्वा (वाणी) सदा भगवद गुणानुगान गाती रहे एवं मेरी श्रवणेन्द्रिया श्रीहरी की कथा का सदा श्रवण करती रहै..!!

बस यही बात को ध्यान में रखते हुए आवो हम हमारी वाणी को विष रूप नहीं पर उसमे मिश्री सी मिठास एवं मध् सी मधुरता धोलकर ” अमृत ” के समान बनावे जिससे हमारे संग सभी  का कल्याण हो…!!

लेखन – गो.हरिराय…!!
(कड़ी-अहमदाबाद-सूरत) 

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