कृपयति यदि राधा बाधिताशेषबाधा किमपरमवशिष्टं पुष्टि मर्यादयोर्मे।(विज्ञप्ती)
श्री राधाजी परमानन्द रूप है ।परमेश्वरी है ।परम कल्यान रूप है ।मुख्य स्वामिनी है ,सो श्री कृष्ण के तेज सु प्रगट भई है ।
श्री राधा शब्द की व्युत्पति सामवेद में निरूपण की है ” र ” कार है सो कोटीक जन्म के पाप कु और शुभाशुभ कर्त कु दूर करे है ।और ” अ ” कार मृत्य भय और रोग कु दूर करे है ।और ” ध ” कार है सो आयूष की हानि कु और ” अ ” कार सो भव् के बंधन कु दूर करे है और जन्म मरण आदि पीड़ा को हरे है ।
श्री राधा शब्द के श्रवण,स्मरण और उच्चारन से जीवन के सर्व पाप नाश नाश करे है यामे कोई संशय नहीं है ।दुसरो एक और भाव राधा शब्द को है ” र ” कार सो श्री कृष्ण प्रभु के चरण कमल में निश्चय भक्ति और दास भाव को देय है ,और ” अ ” कार है सो सबन कु इच्छित एसो यह ईश्वर सम्बन्धी अनन्त सुख देत है और सर्व सिद्धी के इच्छित एसो सर्वोत्तम एश्वर्य कु देत है ” ध ” कार सो वे ईश्वर के साथ सहवास कु देत है और जो ” अ ” कार है सो पुष्टि सारुप्य आदि मुक्ति देत है और हरी सरीखे तत्व ज्ञान कु देत है ।
आपका गो.हरिराय…!!
(कड़ी-अहमदाबाद-सूरत-मुंबई)
Comments