विचार मंथन…!!
गीता ज्ञान मंथन..!!
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥
(आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः)
भावार्थ : जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अन्तर्गत देखता है, उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता..!!
जन्माष्टमी महामहोत्सव की मंगल बधाई…!!
श्री कृष्ण हम सब को प्रिय है आओ अब हम श्री कृष्ण के प्रिय बन जाय…!! यही वैष्णवी जीवन का परम फल है..!!
हमारे मन में कृष्ण , हमारी वाणी में कृष्ण , हमारे विचारों में कृष्ण हो और हमारे क्षण क्षण में और रोम रोम में श्री कृष्ण बस जाय…!!
जो हमारे ह्रदय में कृष्ण होंगे तो वह हमारी वाणी एवं हमारे नेत्रों(द्रष्टि) द्वारा अवश्य प्रगट होंगे और उसके फल स्वरुप हम अच्छा और मधुर बोलेंगे और अच्छा देखेंगे..!! हमारी दोषबुद्धि का नाश होगा..!!
फिर सर्व जगत कृष्णमय द्रश्य होगा..!!
!! जय श्री कृष्ण !!
आपका गो.हरिराय..!!
(कड़ी-अहमदाबाद-सूरत-मुंबई)
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