यो वद्त्यन्यथा वाक्यमाचार्यवचनाज्जन: ,!
संसृतिप्रेरको वाप़ी सत्संगो दुष्टसंगम: !!
(शिक्षापत्र 3/8)
– जो व्यक्ति श्री आचार्यजी (गुरुन) के वचन से अन्यथा विपरीत वचन कहे वाको संग दुष्ट संग (दु:संग) जाननो..!!
वर्तमान समय में पाखंडी जिव वैष्णव को वेश धारण कर जो सत्संग के नाम से मिथ्या प्रलाप और दु:संग करा रहे हे वो और जो अज्ञानी ना समज जिव उनके संग से “बहिर्मुख ” होकर भटक रहे हे, वो अवश्य ध्यान रखे की….
” सर्व श्री वल्लभाचार्यप्रसादेन भविष्यति ”
– पुष्टिजीवों के सभी कार्य श्री आचार्यजी की कृपा प्रसाद से ही सिद्ध होंगे..!!
Dandwat Pranam Je Je…
Man me Ek Prashna tha ki Aise jo pakhandi jiv hai unhe kaise pehchana jaye…?
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