रथ यात्रा की विशेषता
वि. १५४५ में आप महाप्रभु श्रीवल्लभ जगदीश पधारे तथा वहां शास्त्रार्थ में विजय भये। जगन्नाथजी प्रसन्न होय के जब सेवा श्रृंगार दिये तब श्रृंगार करत में श्रीगोवर्द्धननाथजी के यहां तथा पुष्टिमार्ग में तीन वस्तुन को अंगीकार करावनी परेगी।
वाही समय प्रभु की आज्ञा मानि,तीन वस्तु स्वीकारी तथा पधारिकै चालू करी –
(१) रथ यात्रा को उत्सव मनावनौ चहिये।
(२) एकादशी हमारे यहां नहीं होय तो आपके श्रीनाथजी में हू नहीं होनी चाहिये।
(३) शाक यहां विशेष अरोगे। श्रीजी में हू शाक विशेष अरोगानो चहिये।
ये तीनों वस्तु जगन्नाथजी की आज्ञा सों पुष्टि मार्ग में आई।
”आषाढ़स्य सितेपक्षे द्वितीया पुष्पसंयुता। तस्यां रथे समारोप्यरामं मां भद्रयासह।
यात्रोत्सवं प्रवृत्यर्थं प्रीणयेच्च द्विजान् बहून्॥
या लिए सर्वप्रथम अडेल में रथ सिद्ध करवयके वामें प्रभु श्रीनवनीतप्रिय को बिराजमान करि बडे धुमधाम गाजे-वाजेसों रथ यात्राउत्सव नगर भ्रमण के साथ कियौ।
तब सों समस्त पुष्टिमार्ग में रथयात्रोत्सव चालू भयौ।(१-क्रमश:)
© श्री पुष्टिधाम हवेली सूरत
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