आओ आत्म दर्शन करे…!!
मनुष्य की प्रवृति दो प्रकार की होती है , एक दैवी और दूसरी आसुरी ! इन्हीको भगवत गीता में क्रमश: दैवी संपद और आसुरी संपद कहा गया है…..!!
* दैवी संपदवाले मनुष्य के लक्षण ये होते है, ध्यान से पढ़े…!!
अभय , चित्त की पवित्रता , ज्ञानयोग में तत्परता , सात्विक दान , इंद्रियों का संयम , निष्काम भावना से भगवदभक्ति , सत्संगी , कष्ट सहिष्णुता , शांत ,सरल स्वभाव , अहिंसा , सत्य , अक्रोध , सांसारिक वस्तु ओ में आसक्ति का ना होना , दुसरे की निंदा न करना , दया , विषयों के लिए लोलुप ना होना , मृदुभाव , बुरे काम करने में लज्जा , चंचलता का ना होंना , तेज , क्षमा , धैर्य , पवित्रता , अद्रोह और दूरभिमान से बचना…!!
आसुरी संपदवाले मनुष्य के लक्षण ये होते है…!!
पाखंड , धमंड , अति अभिमान , क्रोध , कठोरता और अज्ञान….!!
प्रिय वैष्णव जनों…!!
यह विचार मंथन हम सब के लिए आत्म चिंतन का विषय है….!!
हमारे पास कोनसी संपदा है ?
दैवी के आसुरी यह निर्णय हम खुद लेवे…!!
भौतिक संपदा के लिए तो संपूर्ण समाज चिंतित है , लेकिन इसके साथ साथ अध्यात्मिक एवं आधिदैविक संपदा के लिए सत्तत चिंतनशील रहेना हम ” पुष्टि जीवों ” का परम धर्म है…!!
© गो.हरिराय…!!
(कड़ी-अहमदाबाद- सूरत-मुंबई)
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