🌿ब्रह्मसंबंध केसे फ़लिभुत होवे ?
एकबार श्री गोकुलेश प्रभु को पंचोली ने पूछयो ,
जे राज कृपानाथ ! आप एक संग कई जीवन कुं हाथ में तुलसीदल लेके प्रभु संमुख निवेदन ” ब्रह्म संबंध ” करवाव हो वामेसे एकाद जिव ही उत्तम भगवदीय होवे है और सब ऐसे के ऐसे ही रहे है याको का कारण है ?
तब श्री गोकुलेश प्रभु ने आज्ञा करी…
निवेदन ” ब्रह्मसंबंध ” फलीभूत होवेके एक नहीं पांच कारण है !
गुरु कृपा पूर्ण होय
जीव को पूर्ण पुरुषार्थ होय
84/252 भगवदीय की कृपा होय
पूर्ण पुरुषोत्तम की कृपा होय
श्री स्वामनीजी (श्रीवल्लभ) की पूर्ण कृपा होय..
प्रिय वैष्णवजन..!!
इन सब कारण में आज के समय में जो सब से ज्यादा आवश्यक हे और जाकु हम आधार स्तंभ भी कह सके वो है.. जीव को पूर्ण पुरुषार्थ…
क्योंकि हमारे पुष्टि पुरुषोत्तम को तो स्वभाव ही कृपा है लेकिन जिव मार्ग में पुरुषार्थ नहीं करेगो तो वो कृपा रूप मंजिल तक नहीं पहोच पायगों…
😇 विचारणीय बात है की आज जिव ” ब्रह्मसंबंध ” तो ले लेवे है लेकिन वाके बात स्वयं पुरुषार्थ कितने करे है ?
आज की स्थिति तो न्यारी है जिव को पुरुषार्थ कम और प्रभु एवं गुरुन को पुरुषार्थ बढ़ गयो है..!!
अपने स्वयं के पुरुषार्थ के बिना जब हमारों लोकीक सिद्ध नहीं हो सके तो यह तो ” अलौकिक ” पामवे की बात है ! केसे होयगो ?
पहेले इन प्रश्नों के उत्तर मिलनो आवश्यक है..!!
ब्रह्म संबंध होयके बाद भी इतनी उदासीनता क्यों ?
इतनी विमुखता क्यों ?
क्यों हमारे मन में वो आनंद अभिलाषा नहीं जग रही ?
क्यों हम व्यर्थ प्रपंच एवं दू:संग में अपनों जीवन व्यतीत करे ?
हमारी द्रष्टी में दोष क्यों है ? जो हमकू दुसरो के दोष दिखावे है ? गुण नहीं !
क्यों निंदा और स्तुति ही हमारो धर्म बन गयो है ?
क्यों सत्संग में रूचि नहीं ?
क्यों सेवा में आनंद नहीं ?
क्यों स्मरण में मन नहीं है ?
इन सब सवालों के जब उत्तर हम जान पाए और याके साथ साथ हम अपने स्वधर्म कु समजे तब जाके कही हमारो ह्रदय द्वविभुत होवे और हम ” पुष्टि पुरुषार्थ ” में अग्रसर होवे..
तब जाके ब्रह्मसंबध फलीभूत हो सके…!!
एक पथ्थर सिर्फ एक बार मंदिर जाता है और भगवान बन जाता है ..
इंसान हर रोज़ मंदिर जाते है फिर भी पथ्थर ही रहते है ..!!
💥 यह विचार मंथन शांत मन से अवश्य पढ़े एवं अभीप्राय देवे..!!
©गो.हरिराय…!!
Dandvat Pranam Krupanath…..
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