सुशीलो मातृपुण्येन ,
पितृपुण्येन चातुरः ।
औदार्य वंशपुण्येन ,
आत्मपुण्येन भाग्यवान ।।
अर्थात् – कोई भी संतान अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है , वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वो भाग्यवान होता है , भाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म आवश्यक है…!!
विचार मंथन..!!
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