रासलीला मनोभाव प्रकाश…!!
गोपी कृष्ण प्रेम की मूर्ति है..!!
हमारा ह्रदय वृंदावन है , आत्मा श्री कृष्ण है , अंत:करण की वृतिया ही गोपियाँ है , शांत शीतल पूर्ण प्रसन्न साधक का जो मन है वह पूर्णिमा का चंद्रमा है ( चंद्र मन के देव है ) भीतर से जो परम प्रेम की भक्ति की जो धारा बह रही है वही श्री यमुनाजी है , अंत: से उठता हुआ अनाहत नाद ही श्री कृष्ण की वेणु का स्वर है..!!
और उस नाद को सुनकर के अंत:करण की वृति रूपी गोपियाँ अंतर मुख होकर के जो बहिर्मुख थी संसार में थी वृतिया वह अंतर मुख होकर के आत्मा रूपी श्री कृष्ण से रमण करने दोड़ती है , ह्रदय रूपी वृन्दावन में जाती है, रमण करती है ” श्री कृष्ण मय ” हो जाती है..!! यानि वृतियों का विलय हो जाता है आत्मा में उसी को योग में समाधि कहते है…!! वही ” रास ” है..!!
यह रास जीवात्मा और परमात्मा का मिलन है..!!
अब विचार करे क्या हमारी अंत:करण की वृतिया ” श्री कृष्णमय ” है…!! जो उत्तर हा है तो हमारा प्रभु के संग रास आज भी चल रहा है..!!
गो.हरिराय…!!
(कड़ी-अहमदाबाद-सूरत-मुंबई)
Comments