VM- शरीर कभी भी पूरा पवित्र नहीं हो सकता फिर भी सभी इसकी पवित्रता की कोशिश करते है…
” मन ” पवित्र हो सकता है लेकिन अफ़सोस कोई कोशिश ही नहीं करता…!!
मन को दुसंग से दूर करे क्योकि वो केवल दुसंग नहीं दुखद संग है.!! जेसे मंदिर में पुष्प जाते है और कचरा बहार निकालते है उसी प्रकार ” मन मंदिर ” में दुसरो के प्रति प्रेम रूप पुष्प को प्रवेश दो एवं अन्य के प्रति द्वेष,निंदा, प्रपंच रूप कचरे को बहार निकालो..
यही विवेक हे यही भाव आपके जीवन में “सुख” का कारन बनेगा..!! आगे आप स्वयं विचार करे…!!
– गो.हरिराय (कड़ी-अहमदाबाद)
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